दंभ भरते हो जिस काया का,
अभिमान कर जिसका इतराते हो,
मुर्झायेगा ये सुमन एक दिन,
जिस कारण मुझे ठुकराते हो,
प्रिय बन जो अब साथ लगे हैं,
कहते जिन्हे सदा तुम अपने,
मधुशाला मे न मधु शेष रहेगा,
भूल जायेंगें ज्यों बिखरते सपने,
मिट जायेगी लाली कपोलों की,
श्वेत काजल से केश होंगें,
दिखेगी रेखाये आयु की मुख पर,
भिन्न अपने ये भेष होगें,
अंत होगी उमंगे ये मन की,
चशु सागर मे होगा ज्योति जल,
चाह न रहेगी कुछ करने की,
शेष रहेगा न ये बाहुबल,
शेष रहेगा तो बस प्रेम मेरा,
मन आयी तन चाह नही,
सुगन्ध प्रेम की लेनी चाही,
की पुष्प रगं परवाह नही,
चाहा ना इस तरुन तनु को,
मिला अमरता का जिसे पन्थ नही,
चाहा मिलाना मन से मन क्योकि,
मेरे प्रेम का अन्त नही,
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