विधवा की मांग सी है मेरी ज़िंदगी
बरसो से जो सूनी पडी है
शायद भर जयेगी उसके आने से
सामने वो जो सिन्दूर बन के खडी है
दिल ओ जान से जिनपे मरते रहे हम
वो पूछ्ते हैं किससे प्यार करते रहे हम
पास रह कर भी वो हम से दूर है बहुत
बात दिल की उनसे कहने से डरते रहे हम
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