Saturday, February 13, 2010

aarzoo

पर्वत की गोद से,
गिरा एक पत्थर,
किसी तलधारा में,
सोचा
"यही है वो राह
जो ले जाती है,
उस सागर तक जहां मिलेंगें
मोती प्रेम के,
छूपा लूंगा कुछ को सीने तले,
कुछ को लगा लूंगा अपने मन से",
ये सोच बह चला
उन धाराओ मे
पाने उन मोतियों को
बहता रहा
प्रबल वेग से,
बहती धाराओं में
बहुत दिनो तक,
सबसे अन्जान स्वयं से बेखबर,
छोड दिया धारा ने,
उस स्थान पर जहां बनता था
उस धारा का डेल्टा,
सागर के ही किनारे,
मन मे आया
"कहां जाती है ये जलधारा
मुझे यहां छोड कर,
मुझे तो सागर तक जाना था,
जिसके लिये ये जलधारा
मुझे लायी थी,
फ़िर क्यों छोडे जा रही है
मुझे किनारे पर ,
देखा स्वयं को ,
अब न था वो विशाल पत्थर,
हो कर रह गया था,
बस एक "रेत का कण"

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