Sunday, October 25, 2020

रात काली सही मगर ढल जायेगी

रात काली सही मगर ढल जायेगी
रोशनी की किरण कल निकल आयेगी
थोड़ा सब्र तो करो सूरज निकलने तक
बर्फ जितनी जमी है सब पिघल जायेगी
पाप था पुण्य था ये बताएगा कौन
सोचते सोचते उम्र निकल जायेगी
उनकी आंखों के पश्नो का उत्तर नही
आँखे आँखों से मिलेंगी न तो मचल जायेगी
हमको विश्वास था उनकी हर बात का
पता न था उनकी बाते ही  छल जायेगी
बैठ कर दोनों मिलकर बात तो करे
बात बिगड़ी भी होगी तो संभल जायेगी

No comments:

Post a Comment