Thursday, August 6, 2020

दोबारा हरे हुए जख्मो पे , फिर से मरहम लगा रही है

कभी प्यार किया था मुझसे , उसे अब तक निभा रही है
दोबारा हरे हुए जख्मो पे , फिर से मरहम लगा रही है
           मिले, बिछड़े, किस्मत ने फिर हमे मिलाया
           मेरी आँखों के आँसू में दर्द उसका बाहर आया
           वो मेरे सामने हँस हँस कर, दर्द अपना छुपा रही है
           दोबारा हरे हुए जख्मो पे , फिर से मरहम लगा रही है
बोझ उस पर भी बहुत है अपने घर परिवार का
मुझसे प्यार भी है उसको, और डर भी है संसार का
दो नाव की सवार है, बस डगमगा रही है
 दोबारा हरे हुए जख्मो पे , फिर से मरहम लगा रही है
            प्यार बेड़ी है पैरो की, उसे बढ़ना है बहुत आगे
            मजबूरी है मुझे छोड़े , या वो अपने सब त्यागे
            सामंजस्य बैठा लुंगी दोनों में, खुद को बहला रही है
            दोबारा हरे हुए जख्मो पे , फिर से मरहम लगा रही है

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