Tuesday, July 29, 2014

सहारनपुर

प्रिय मित्रो, प्रणाम
आज बहुत दिनों के बाद कोई कविता बनी है कविता क्या दिल का दर्द बाहर आया है


फीकी हो गयी मिठास शीर की 
चटपटी न लगी आज  फुलकियां 
हर निवाले के संग आँखों में 
आती, जलती दुकानो की झलकियाँ 

शर्मसार है आज  इंसानियत यहाँ 
क्या झांकते हो खोलके खिड़कियां  ?

सलामत दोस्त को घर पहुचाना कसूर था 
बड़ी बहादुरी दिखाई चला के उसपे गोलियाँ 

एक मुद्दत लगी थी उसको रोजी चलाने  में 
पल में जलवा  दिया  पाने को सियासी सुर्खियाँ 

क्या हिन्दू क्या मुसलमां सब एक से है 
तुम सबको प्यारी है तो सिर्फ अपनी कुर्सियाँ 



6 comments:

  1. मर्मस्पर्शी पंक्तियाँ बहुत दिनो के बाद आपको लिखते देखकर खुशी हुई।

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  2. आपने हामारी भी दिल की बात की ! आप भी मेरे ब्लॉग का समर्थन करें |
    अच्छे दिन आयेंगे !
    सावन जगाये अगन !

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  3. मर्म को छूती है आपकी रचना ... ऐसे में त्यौहार क्या ...

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  4. इस रचना के लिए हमारा नमन स्वीकार करें

    एक बार हमारे ब्लॉग पुरानीबस्ती पर भी आकर हमें कृतार्थ करें _/\_

    http://puraneebastee.blogspot.in/2015/03/pedo-ki-jaat.html

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