Monday, June 27, 2011

प्यार और जख्म

उन जख्मो को कुरेदने में मज़ा आता है

जख्म जो भी तेरी याद दिला जाता है

छेड़ता हूँ जख्मो को, तुम्हे भूल न जाऊ कहीं

वक्त का मरहम हर जख्म सुखा जाता है

बंध भी जाते किसी रिश्ते में तो क्या होता

प्यार पे आ के ही हर रिश्ता टिक जाता है

तुमसे अलग हो के मैं जी तो रहा हूँ

नाम कृष्ण का अब भी राधा के बाद आता है


Friday, June 10, 2011

कब तक प्यासी धरती से


लगभग १५ दिन से बिजली व् नेट की प्रोब्लम के कारण आप सब से न जुड पाने के लिए क्षमा के साथ एक पुरानी रचना प्रस्तुत है 

कब तक प्यासी धरती से, अब और हम तरसगे,
जिन पर टिकी हुई हें आँखे  वो सावन कब बरसेगे,
कब मिलोगे तुम हमे कब पास मेरे आओगे,
कब बैठोगे संग मेरे कब मेरी प्यास बुझाओगी,
कितना और समझाऐ मन को कितने दिलाशे हम देगे,
जिन पर टिकी हुई हैं  आँखे वो सावन कब बरसेगे,
तुमको देखा तुमको चाहा और नही कुछ चाहा है  ,
झाँक  के देखो इन आँखों में चेहरा एक समाया है ,
होठ खुले जब भी मेरे नाम तेरा ही बस लेगे,
जिन पर टिकी हुई है आँखे वो सावन कब बरसेगे,
कब देखोगे छूकर मन को अपने मन की धडकन से,
और कब तक अन्जान रहोगे मेरे दिल की तडपन से,
‘दीपक’जलाया तेरे प्यार का अब बुझने ना हम देगे,
जिन पर टिकी हुई है आँखे वो सावन कब बरसेगे,