Thursday, November 11, 2010

भावनाये

इस छोटे से मन मे
भावनाये अनेक बसती है
नये नये रंगो से प्रतिदिन
रंगोलिया नई सजती है
         सजते है नित सपने नये
         आशायें जन्म लेती है
         उडती प्रेमाकाश मे
         खोल परो को लेती है
नववधु बनकर मुस्काती
घुंघट खोल रिझाती है
कौन अपना कौन पराया
सब को गले लगाती है
          खिलती गुलाब सी, तुम्हे देखकर
          आँख मिले तो शर्माती है
          ये भावना है मन की
          तुम पर प्रेम लुटाती है
तुम मिलो तो आये चैन
ना मिलो तेा घबराती है
तुम्हारे वियोग के नाम से
रोती है , डर जाती है
        सब अन्त हो जाता है
        और सांसे  भी रूक जाती है
         जब कभी किसी मन की
         भावनाये बिखर जाती है

मुबारकबाद

          दोस्तो सबसे पहले तो आप मुझे मुबारकबाद दिजिए। अरे नही नही मेरी सगाई नही हुई है और ना ही मेरी नौकरी लगी है। ना ही ऐसा कुछ हुआ है जैसा कि आप सोच रहें है।
         पिछले आठ दिन से मै इस चक्कर मे लगा हुआ था, मै ही क्या सभी यार दोस्त भी, यहाँ तक की दिवाली भी इसी चक्कर मे निकल गयी। आप लोगो से  मुलाकात भी न हो पायी (पोस्ट पढकर या टिप्पणी देकर) आप भी सोच रहे होंगे की दिवाली मना रहा है या बिमार है कि कुछ पता ही नही कहाँ है, अपने ब्लाग पर भी लिखकर नही गया। इधर हम भी परेशान क्योकि आप लोगो से सम्पर्क जो नही था।
      हुआ यूँ के 3 नवम्बर की शाम को मेरे गाँव  के एक बच्चे ने रोकेट छोडा, अब आप कहेगें कि इसने कौन सी बडी बात है दिवाली पर सभी छोडते है। लेकिन उस बच्चे के राकेट का एंगेल गलत हो गया ओर वो जा चला सीधे टेलीफोन एक्सचेंज की तरफ, अब उसके पास भी एक पटाखे वाले की दुकान, राकेट सीधा पटाखो पर और फिर जो आतिश बाजी हुई उसका क्या हाल बताऊ। कुछ राकेट उडे और जा घुसे एक्सचेंज के जेनरेटेर के पास रखे डीजल के ड्रम मे, और फिर क्या था, चारो तरफ आग ही आग। पूरा गाँव आग बुझाने मे लग गया, आग तो बुझ गयी पर पूरा नेटवर्क बंद हो गया, हमारा इंटरनेट भी, अब हम परेशान की क्या करे बिना इंटरनेट के तो हम बेकार है। अगले दिन जाकर पता किया कब तक ठीक होगा तो कहा गया शाम  तक हो जाना चाहिए हम कोशिश मे लगें हैं। लेकिन शाम तक भी न हुआ, अब यार दोस्त भी परेशान, किसी का मेल आना था किसी को चैट करना था (गाँव मे मेरी ही इकलौती दुकान है जहाँ इंटरनेट की सुविधा है ) बस फिर क्या था सलाह हुई कि ऐसे तो काम न चलेगा एक्सचेंज मे जाकर ही कुछ करना पडेगा और हमारी टीम बहुच गयी एक्सचेंज। अब बी एस एन एल वालो के साथ साथ हम भी मशीनो के साथ हाथापाई करने लगे। हम मशीनो से परेशान, मशीने बी एस एन एल वालो से और बी एस एन एल वाले हम से, कई दिन की जंग के बाद आज लाईन चालू हुई।
       आज लाईन चालू होने के बाद जो खुशी हुई उसे मै ब्यान नही कर सकता। आज नेट चालू होने के बाद मै फिर से अपने उस परिवार से मिल रहा हूँ जिसकी आठ दिन से खैर खबर ही नही थी। इसलिए मुझे मुबारकबाद दिजिये कि मेरा इंटरनेट चल गया और मै अपने परिवार मे वापस आ गया।
        आज पहली बार गद्य मे कुछ लिखा है जानता हूँ बहुत सारी गल्तिया की होंगी, पर आप उन गल्तियो को नजरअंदाज कर छोटा भाई समझ कर माफ कर देना।

Wednesday, November 3, 2010

वायरस तेरे प्रेम का

जिन्दगी के कमप्यूटर मे आया जबसे, वायरस तेरे प्रेम का,
बंटाधार करके ही माना मेरे दिल के फ्रेम का,
                 छोटे छोटे सपनो की, फाईले इतनी बनाई,
                 लाख जतन करके भी, डिलिट ना हो पाई,
पापा ने भी डंडे का मुझ पर, एंटी वायरस चलाया,
पर वायरस तेरे प्यार का, कमप्यूटर से निकल ना पाया,
               उडा कर सारी खुशियो का डाटा, आप गायब हो गयी,
               आशाओ की सारी फाईले, पी.सी से गुम हो गयी,
धीरे धीरे करप्ट इसने, दिमाग की रैम कर दी,
हार्ड डिस्क की सारी मैमोरी, अपनी यादो से भर दी,
               फारमेट किया सिस्टम सारा, शायद रह गयी कुछ कमी है ?,
               क्योंकि आरजू की फाईल मे अब, पहले सा डाटा नही है,

Monday, November 1, 2010

चिंता

बैठा रहा चिंता नाग
मन पर कुण्डली मारे
डसता रहा, फन फैलाकर
बार बार मन मे भरता रहा
 बेतोड अपनी विष आग,

रक्त की बूँद बूँद मे
रम गया विष इसका
धुआ हो गया शरीर
निष्चेतन होने लगे प्राण,

चाहा कई बार
मार डालूं ये नाग
सुरा की लाठी से
परन्तु, विफल रहा
हर प्रहार से,
वो अधिक बलवान होता गया,
और अधिक विषैला हो
डसता रहा,

निकली न कोई राह
इसको मारने की और,
खत्म करने की विष का प्रभाव,
असफल रहा हर शस्त्र,

क्षत विक्षप्त मन और
जीर्ण शीर्ण तन लेकर
जीता रहा, परन्तु कब तक ?
आखिर एक दिन
आत्मा ने बदल ही लिये वस्त्र