कितनी बरसाते आयी गयी, फिर आयी ना वो बरसात
घण्टो भीगे पेड़ के नीचे ले हाथो में हाथ
क्या याद तुम्हे है अब भी वो शाम कितनी सुहानी थी
काली घटाए, तेज बारिश, हवाये भी तूफानी थी
बिजली कड़की बादल गरजे, थर थर कांपे गात
घण्टो भीगे पेड़ के नीचे ले हाथो में हाथ
अब तक भी है याद मुझे वो अहसास तब हुआ था
धीरे से जब हाथ ने तेरे मेरा हाथ छुआ था
सिहरन सी उठी थी तन में तेज हो गयी सांस
घण्टो भीगे पेड़ के नीचे ले हाथो में हाथ
साय साय चलती हवा से पत्ते शीशम के लहराए थे
बिजली कड़की , अधर तेरे मेरे अधरों से टकराये थे
गीला तन था , गीला मन था गीले थे जज्बात
घण्टो भीगे पेड़ के नीचे ले हाथो में हाथ
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