Thursday, March 31, 2011

ग़ज़ल

वो जब से पास आने लगे है
मेरे जख्म मुस्कुराने लगे है
जागने लगी सोई हसरते मेरी
वो सपने नए दिखने लगे है
भूल बैठे थे जिस मधुर गीत को
गीत वो फिर हम गुनगुनाने लगे है 
कभी अंधेरो कभी उजालों की तरह
वो मुझसे नज़रें मिलाने लगे है
होता नहीं यकीन अंपनी आँखों पे
अचानक सामने वो मुस्कुराने लगे है
बुझ जाना ही जिनकी किस्मत बन गया था
दीपक वो फिर से टिमटिमाने लगे है

Tuesday, March 22, 2011

बात आयी तेरी

बातो ही बातो में जब बात आयी तेरी
यादों से तेरी महकी यार तन्हाई मेरी
                 रंज नहीं दिल में तू पास नहीं मेरे
                 लगने लगी है प्यारी अब जुदाई तेरी
बड़े प्यारे लगते हो  मिलते हो ख्वाबो में
नींद से हो गयी जैसे कुडमाई  मेरी
                 बेशक हो दूर मुझसे पर दूर नहीं लगते
                 मेरे दिल में देती है धड़कन सुनायी तेरी
नाप ली दुनिया ने गहराई  समुन्दर की
देखेगी क्या वो चाहत की गहराई मेरी
                तरसता है क्यों "दीपक"  ज्योति के लिए
                कब तक रहेगी दूर वो है परछाई  मेरी



Tuesday, March 15, 2011

ग़ज़ल

कई दिनों से व्यस्त होने के कारण कुछ ब्लोग्स पर जाना नहीं हुआ, और कुछ पर गया  भी तो टिप्पणी नहीं कर पाया, कुछ पोस्ट्स  को मोबाइल पर पढ़ा तो अंग्रेजी में टिप्पणी की इस के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ,

होली आने वाली है तो हम भी थोड़ी मस्ती कर ले, आप लोगो ने बहुत सी ग़ज़ल पढ़ी होंगी  और सुनी होगी,  कभी सोचा है  ग़ज़ल कैसे बनती है?  नहीं ........ तो सुनये

लड़की छेड़ी लगा चांटा तो ग़ज़ल बनी
फेल हुए पापा ने डांटा तो ग़ज़ल बनी
भोंकता रहा देर तक वो मुझे देख कर
उनकी गली के कुत्ते ने काटा  तो ग़ज़ल बनी
वो दूर रहे मझसे तो कोई बात नहीं
पास आकर औरों से भिड़ाया टांका तो ग़ज़ल बनी
बड़े शोंक से दिलाई हाई हिल  सैंडिल उनको
बाज़ार में वो ऊँची लगी मैं नाटा तो ग़ज़ल बनी
दावतों पे दावत देते रहे दोस्तों को
हो गया जेब को घाटा तो ग़ज़ल बनी
खुले आम गुलाल लगाया परायी जायी को
फिर चप्पल बजी बाटा तो ग़ज़ल बनी


होली की शुभकामनाये

Sunday, March 6, 2011

प्रेम की परिभाषा

प्रेम की परिभाषा
न समझ सका आजतक
ये तृप्ती है या पिपासा
आशा है या निराशा
न समझ सका आजतक


प्रेम वो है जो
दिखता है प्रिया की आँखो मे
कोई प्यारा सा उपहार पाकर
या प्रेम वो है जो
सुकून मिलता है आफिस से आकर
तुम्हारी मुस्कान पाकर
प्रेम वो है जो
चाँद पर जाने की बात करता है
केशो को घटा, आँखो को समन्दर
गालो की तुलना गुलाब से करता है

या वो
जो बचाता है पाई पाई घर चलाने को
आटे दाल की फिक्र मे प्रतिपल गलता है
सुबह से लेकर रात तक
प्रेम की परिभाषा
न समझ सका आजतक