Saturday, November 20, 2010

दुनिया और प्रेमी

ये नही, कि विश्वास नही
स्नेह की करूण प्यास नही
मन मे प्रेम मेरे इतना
गर्भ अवनी जल जितना


ये सोच लगता है डर
निभाये हम प्रेम क्योंकर
पवित्र स्नेह नीरज खिलना
कठिन, सत्य प्रेम मिलना
हर मन ज्यो कपट बसा
दल दल लोभ मनुष्य फँसा
किस पर लगे सत की आस
कैसे मिटे ये प्रणय प्यास


मिल भी जाये जो साथी
प्रभा कोई ज्यो जगमगाती
आ जाये जीवन ज्योति बनकर
मन मे सत्य निष्ठा भरकर
स्नेह भर, अंक जलागे
मन की प्रणय तृष्णा बुझाये
बिसार कर हर मोह पाश
बाध्ँ भी दे कोई विश्वास

तो, पग मे होता आन खडा
जो, प्रेम का शत्रु बडा
कभी जाति की बेडी बनकर
कभी धर्म दीवार सा तनकर
धन कभी राह मे लाता
कभी कुल का मान दिखाता
बहुरूपिया सा, वेष बदलकर
समाज आता कई रंगो मे ढलकर

तुम ही कहो क्या बन पडे
दो दीप अन्घेरो से लडे
रात लम्बी काली बडी
विपदाये मुह बाँये खडी
पक्ष हमारा न कोई ले पाये
अपने पराये एक हो जाये
सर्घष कर बुझने के सिवा
और वो कर सकते है क्या

9 comments:

  1. तो, पग मे होता आन खडा
    जो, प्रेम का शत्रु बडा....

    बहुत अच्छी शैली में आपने एक दर्द को अभिव्यक्ति दी है. शुभकामनाएँ.

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  2. "सर्घष कर बुझने के सिवा
    और वो कर सकते है क्या"

    हर खेल जीतने के लिये नहीं खेला जाता। असली मूल्य है भावना का, संघर्ष तो किया दोनों ने, और वो भी मिलकर। इतना बहुत है। वैसे भी,
    loser knows the value of victory better.

    बहुत अच्छे भाव हैं, दीपक। शुभकामनायें।

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  3. .

    तुम ही कहो क्या बन पडे
    दो दीप अन्घेरो से लडे
    रात लम्बी काली बडी
    विपदाये मुह बाँये खडी
    पक्ष हमारा न कोई ले पाये
    अपने पराये एक हो जाये
    सर्घष कर बुझने के सिवा
    और वो कर सकते है क्या...

    Brave people do not look for support. They themselves are capable of fighting against all odds till their last breathe.

    Thanks for a wonderful creation.

    Best wishes,

    .

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  4. @ Bhushan ji
    @ मो सम कौन ji,
    @ ZEAL

    अपना किमती समय देने के लिए
    और मेरे लिए शुभकामनाओं के धन्यवाद
    आपके स्नेह की आरजू हमेशा रहेगी

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  5. अगर ये कविता आपने लिखी तो ....... बहुत बहुत साधुवाद......

    सुंदर भाव है..

    और सुंदर भविष्य के लिए सुभकामनाएं

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  6. bahut hi khubsurat rachna ke liye badhai....

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  7. ये सोच लगता है डर
    निभाये हम प्रेम क्योंकर
    पवित्र स्नेह नीरज खिलना
    कठिन, सत्य प्रेम मिलना
    हर मन ज्यो कपट बसा
    दल दल लोभ मनुष्य फँसा
    किस पर लगे सत की आस
    कैसे मिटे ये प्रणय प्यास
    बहुत प्रभावी और सटीक भावयुक्त पंक्तियाँ.... बेहतरीन

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